उत्तराखंड में करीब एक लाख जल स्रोत सूखने के कगार पर

अनियंत्रित विकास कार्यों का प्रभाव भूमिगत जल पर पड़ रहा है। पिछले 30 से 40 सालों में उत्तराखंड में करीब एक लाख प्राकृतिक जल स्रोत सूखने के कगार पर पहुंच गए हैं। प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के लिए समुदाय पर आधारित जल स्रोत प्रबंधन केंद्र बनाए जाने की आवश्यकता है। इन प्रबंधन केंद्रों पर स्थानीय पंचायतों की भूमिका भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। श्रीदेव सुमन विवि के भूगोल विभाग की ओर से आयोजित सेमिनार में विशेषज्ञों ने अपने शोध आधारित विचार व्यक्त किए। एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि के भूगोल विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर व श्रीदेव सुमन विवि के पूर्व कुलसचिव डाॅ. मोहन पंवार ने कहा कि उत्तराखंड की सदानीरा नदियों में 65 फीसदी जल प्राकृतिक स्रोतों का है। लेकिन बारिश की अनियमितता व अनियंत्रित विकास निर्माण कार्य भूमिगत जल को प्रभावित कर रहे हैं। सड़क व सुरंगों के निर्माण से जलभृत क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। जिससे प्राकृतिक स्रोत सूख रहे हैं या सूखने के कगार पर पहुंच रहे हैं। प्रो. पंवार ने बताया कि 30 से 40 सालों में उत्तराखंड के प्रत्येक गांव में एक से दो प्राकृतिक जल स्रोत सूखे हैं या सूखने के कगार पर पहुंच गए हैं। 2017 की नीति आयोग की रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख है। प्रो. पंवार ने कहा किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है। जल नीति निर्धारित कर प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण व इनकों पुनर्जीवित करने की पहल की जानी चाहिए।

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