अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र के 1300 से अधिक गांवों के ग्रामीण अब भी मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए तीन से 10 किमी की पैदल दूरी नाप रहे हैं। सड़क के अभाव में ग्रामीण महंगाई की मार सहने के लिए मजबूर हैं। खबर में पढ़िए लोगों की पीड़ा…
उत्तर प्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आए 24 साल के उत्तराखंड की सियासत में अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र का खासा प्रभाव रहा है। अलग राज्य में अब तक हुए पांच विधानसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र से दोनों ही प्रमुख दलों के नेताओं को सूबे के मुखिया की कुर्सी तक पहुंचने के साथ ही कैबिनेट में शामिल होने का मौका मिला है। अलग राज्य में हुए चार लोकसभा चुनावों में केंद्र सरकार में भी इस संसदीय क्षेत्र के नेता अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं। हैरानी तब होती है जब इस संसदीय क्षेत्र में शामिल चारों जिलों के 1323 गांवों में आज तक सड़क नहीं पहुंच सकी है। लंबे इंतजार और नेताओं के बड़े-बड़े दावों और आश्वासन के बाद भी जब सड़क गांव तक नहीं पहुंची तो इनसे पलायन शुरू हुआ। ये गांव खाली होते चले गए। फाइलों में तो सड़कें बन रही हैं, लेकिन धरातल पर नजर नहीं आ रहीं। गांव में बचे लाचार और विवश ग्रामीण दुश्वारियां झेलते हुए जल्द सड़क पहुंचने की उम्मीद लगाए हैं। सड़क के अभाव में बीमारों और गर्भवतियों को समय पर अस्पताल पहुंचाना चुनौती बन गया है। डोली के सहारे समय पर अस्पताल न पहुंचने से बीमार रास्तों में दम तोड़ रहे हैं। ऐसे में पथराईं आंखें और रास्तों में हांफते बीमार और गर्भवतियों के मन में एक ही सवाल है कि क्या कभी हमारे गांव तक भी सड़क पहुंचेगी।